मैं सिर्फ देह ही नहीं हूँ, एक पिंजरा भी हूँ, यहाँ एक चिड़िया भी रहती है... एक मंदिर भी हूँ, जहां एक देवता बसता है... एक बाजार भी हूँ , जहां मोल-भाव चलता रहता है... एक किताब भी हूँ , जिसमें रोज़ एक पन्ना जुड जाता है... एक कब्रिस्तान भी, जहां कुछ मकबरे हैं... एक बाग भी, जहां कुछ फूल खिले हैं... एक कतरा समंदर का भी है ... और हिमालय का भी... कुछ से अनभिज्ञ हूँ, कुछ से परिचित हूँ... अनगिनत कणों को समेटा हूँ... कि मैं ज़िंदा हूँ !!! - हीरेंद्र
Sunday, May 31, 2020
Tuesday, April 28, 2020
#एकप्रेमीकीडायरी #हीरेंद्र
ज़िंदगी से होने को तो बहुत सारी वाज़िब शिकायतें हैं मेरे पास पर साँस लेने की सिर्फ़ एक वजह आज भी तुम ही हो। जैसे चाय की इन चुस्कियों में तेरी स्मृतियों का स्वाद घुला है, वैसे ही खिलते-महकते ये फूल मुझे तुम्हारी निर्मल मुस्कान की याद दिलाये संभाले रहती हैं। मैंने पिछले एक महीने में तुमको जितना याद किया है, इतने पर रामायण काल में परमपिता ब्रह्मा स्वयं प्रकट हो जाया करते थे। आज भी अगर वे आ जाएं और मुझे कुछ वरदान देने का मन बनाएं तो मैं उनसे बस यही माँगू कि मेरे चित्त से तुम्हारी छवि कभी धूमिल न होने पाए। सुना तुमने उन्होंने तथास्तु कहा है। क्या कहा? मैं बौरा गया हूँ। हो सकता है.. क्योंकि किसी के प्रेम में बौरा जाने की पूरी संभावना होती है। इसके अलावा कोई और विकल्प भी तो नहीं! #एकप्रेमीकीडायरी #हीरेंद्र
Monday, April 27, 2020
एक प्रेमी की डायरी 😊 #हीरेंद्र
तुमको याद करते हुए जब मेरा मन खुद से ही बात कर रहा होता है ...
तो मैंने यह अनुभव किया है, कि मेरा ये मन, कई बार मुझे ही सुनने से इंकार कर देता है...
हाँ, जब ज़िक्र तुम्हारा आ जाए तो यह इकलौता सा मेरा दिल भी मेरी नहीं सुनता।
हवा, मौसम, चाँद, सितारे, बादल, पेड़, ये फूल... कोई भी मेरी नहीं सुनता।
जिसे मैं अपना हमराज़ समझता हूँ, वो समंदर भी मुँह फेर कर मुझे पहचानने से इंकार कर देता है.
तुम यहाँ नहीं होती, पर ये सब तुम्हारी तरफ़दारी में लग जाते हैं.
यूँ लगता है मानो, कि इस पूरी प्रकृति को तुमने मेरी पहरेदारी में लगा रखा है...
कभी-कभी तो मैं भी खुद को एक कटघरे में खड़ा पाता हूँ.
सुनो...मुझे इनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं।
तुम भी इनका ऐतबार मत करना।
मैं जानता हूँ कि एक चिड़िया की चोंच तक से उसकी उदासी पहचान लेने वाली तुम...इतनी निष्ठुर नहीं, कि मेरी संवेदनाएँ तुम तक न पहुँचती हों...
#हीरेंद्र #एकप्रेमीकीडायरी
Sunday, April 12, 2020
जलियांवाला बाग नरसंहार की कहानी, इन तस्वीरों की ज़ुबानी #JallianwalaBaghmassacre
आज वैशाखी है. पंजाब और हरियाणा में इस पर्व की ख़ासी धूम रहती है. नयी फ़सल की आमद का यह जश्न हर साल इसी तारीख यानी 13 अप्रैल को ही मनाया जाता है. लेकिन, यह तारीख इतिहास में भी अपनी एक अलग भयावहता के लिए अंकित है. जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में किसने नहीं सुना. आज से 101 साल पहले इसी दिन सारी दुनिया ने अंग्रेज़ों का एक क्रूर और अमानवीय चेहरा देखा था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.
देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया. हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया. वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं. गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी और दो हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए थे).
क्या आप जानते हैं 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।
Tuesday, March 31, 2020
Monday, March 30, 2020
कोरोना डायरी #CoronaDiary
जीवन का हिसाब स्पष्ट है - खुश रहोगे तो खुशियां मिलेगी और दुखी रहोगे तो दर्द. यह बात समझने में कई बार हमें ज़िंदगी भर का सफर तय करना पड़ सकता है. लेकिन, इसके लिए ज़िंदगी हमें हर कदम पर मौके देती है, इशारे करती है. बस आपको सचेत रहना है और पूरी समग्रता से उन इशारों को समझना होता है.
यह लिखने में भले आसान हो पर इस पर अमल करना उतना सहज नहीं। हर इंसान का अपना अनुभव और दृश्टिकोण होता है. जिसमें तपकर हम किसी चीज़ के प्रति अपना एक नजरिया बनाते हैं. यह नजरिया उधार का तो बिलकुल भी नहीं हो सकता। कबीर ने कहा या बुद्ध ने कहा यही सोचकर कोई बात नहीं मान लेनी चाहिए। जब तक हम स्वयं उस अनुभूति से साक्षात्कार न कर लें दुनिया भर के दर्शन और साहित्य बेमानी हैं.
आप आँखें बंद करके खुद को टटोलिये कि आप इस जीवन से क्या चाहते हैं? अगर आप देख पायें तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि दस में से नौ लोगों को तो यह बिलकुल भी नहीं मालूम होता कि वो इस जीवन से क्या चाहते हैं. इन दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरीके से चीज़ों को समझना होगा। पहले वे लोग जो देख पा रहे हैं कि उन्हें इस जीवन से क्या चाहिए, वो बस उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित रखें. क्योंकि जीवन बहुत ही विराट है- यहाँ थोड़ा-थोड़ा सब कुछ पा लेना भी आसान नहीं। और थोड़ा-थोड़ा पाकर भी आप बेचैन ही रहेंगे। जो भी पाना हो वो सम्पूर्णता के साथ पाना, तभी आप आनंदित हो सकते हैं. अगर आप स्पष्ट हैं कि आप को जीवन से क्या चाहिए तो आप यह समझ लें कि आपको बस उसी पर केंद्रित रहना है. व्यर्थ के प्रयासों में समय न गंवा दें. मान लीजिये कि आपको एक महाकाव्य रचना है तो बस आपका पूरा ध्यान इसी बिंदु पर होना चाहिए। सोते-जागते आप अपने महाकाव्य को साकार होते दिखे। अगर आपको अपने मन में महाकाव्य के पन्ने नज़र आने लगे तो समझो आपने महाकाव्य रच दिया। यह और भी बातों के लिए उतना ही सटीक है.
दूसरी बात कि आपको अभी भी नहीं मालूम कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए। तो बेहतर है खुद के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ारे। अपने आप को समझें। ह्रदय की गहराइयों में उत्तर कर खुद को देखें कि ऐसी कौन सी बात है जो आपको मिल जाए तो आप खुश हो जाएंगे। अगर आप ईमानदारी से खुद का मूल्यांकन करें तो इस बात की कोई भी वजह नहीं कि आप निरुत्तर रहे.
और जब एक बार आप समझ गए कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए तब आगे का रास्ता स्वतः ही निर्मित होना शुरू हो जाता है. इस शोध के लिए यह 21 दिनों का लॉकडाउन बहुत ही कारगर है. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ. जीवन में एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ है कि मैंने आत्महत्या करने का सोचा है. लेकिन, नहीं अब मैं समझ गया हूँ कि मरने से पहले ज़िंदगी एक बार जी ही लेनी चाहिए। इति शुभम!
हीरेंद्र झा
यह लिखने में भले आसान हो पर इस पर अमल करना उतना सहज नहीं। हर इंसान का अपना अनुभव और दृश्टिकोण होता है. जिसमें तपकर हम किसी चीज़ के प्रति अपना एक नजरिया बनाते हैं. यह नजरिया उधार का तो बिलकुल भी नहीं हो सकता। कबीर ने कहा या बुद्ध ने कहा यही सोचकर कोई बात नहीं मान लेनी चाहिए। जब तक हम स्वयं उस अनुभूति से साक्षात्कार न कर लें दुनिया भर के दर्शन और साहित्य बेमानी हैं.
आप आँखें बंद करके खुद को टटोलिये कि आप इस जीवन से क्या चाहते हैं? अगर आप देख पायें तो आप खुशकिस्मत हैं क्योंकि दस में से नौ लोगों को तो यह बिलकुल भी नहीं मालूम होता कि वो इस जीवन से क्या चाहते हैं. इन दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरीके से चीज़ों को समझना होगा। पहले वे लोग जो देख पा रहे हैं कि उन्हें इस जीवन से क्या चाहिए, वो बस उन्हीं पर अपना ध्यान केंद्रित रखें. क्योंकि जीवन बहुत ही विराट है- यहाँ थोड़ा-थोड़ा सब कुछ पा लेना भी आसान नहीं। और थोड़ा-थोड़ा पाकर भी आप बेचैन ही रहेंगे। जो भी पाना हो वो सम्पूर्णता के साथ पाना, तभी आप आनंदित हो सकते हैं. अगर आप स्पष्ट हैं कि आप को जीवन से क्या चाहिए तो आप यह समझ लें कि आपको बस उसी पर केंद्रित रहना है. व्यर्थ के प्रयासों में समय न गंवा दें. मान लीजिये कि आपको एक महाकाव्य रचना है तो बस आपका पूरा ध्यान इसी बिंदु पर होना चाहिए। सोते-जागते आप अपने महाकाव्य को साकार होते दिखे। अगर आपको अपने मन में महाकाव्य के पन्ने नज़र आने लगे तो समझो आपने महाकाव्य रच दिया। यह और भी बातों के लिए उतना ही सटीक है.
दूसरी बात कि आपको अभी भी नहीं मालूम कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए। तो बेहतर है खुद के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ारे। अपने आप को समझें। ह्रदय की गहराइयों में उत्तर कर खुद को देखें कि ऐसी कौन सी बात है जो आपको मिल जाए तो आप खुश हो जाएंगे। अगर आप ईमानदारी से खुद का मूल्यांकन करें तो इस बात की कोई भी वजह नहीं कि आप निरुत्तर रहे.
और जब एक बार आप समझ गए कि आपको इस जीवन से क्या चाहिए तब आगे का रास्ता स्वतः ही निर्मित होना शुरू हो जाता है. इस शोध के लिए यह 21 दिनों का लॉकडाउन बहुत ही कारगर है. यह मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ. जीवन में एक से ज़्यादा बार ऐसा हुआ है कि मैंने आत्महत्या करने का सोचा है. लेकिन, नहीं अब मैं समझ गया हूँ कि मरने से पहले ज़िंदगी एक बार जी ही लेनी चाहिए। इति शुभम!
हीरेंद्र झा
Thursday, March 26, 2020
#CoronaDiary #Day2
आज का दिन थोड़ा बेहतर गुज़रा और आज मैंने अगले 7 दिनों के लिए अपना रूटीन बना लिया है. उससे पहले आज कुछ काम को लेकर भी कुछ लोगों से बात हुई और इस दौरान यह तय हुआ कि कोरोना के इस लॉक डाउन का लाभ उठाकर कुछ प्रोजेक्ट के काम पूरे कर लिए जायें। संभवतः अब इस दिशा में भी काफी वाट लगने वाला है.
बहरहाल, आज दिन में ओशो के कुछ वीडियो सुने। ग्रेजुएशन के दौरान मैंने ओशो को खूब पढ़ा है और उसका मुझे लाभ भी हुआ. लेकिन, अरसे से ओशो और उनकी बातें भूला सा था एक बार फिर उन लम्हों को जी रहा हूँ. मैंने अनुभव किया है कि संन्यास मेरा मूल स्वभाव है. इसलिए भी इस राह पर जाने से थोड़ा बचता हूँ. क्योंकि यह बहुत ही आसान है मेरे लिए. और अगर मैं इस राह पर बढ़ चला तो मुझसे जो लोग जुड़े हुए हैं उन्हें परेशानी हो सकती है. इसलिए कहीं न कहीं मन में यह रहता है कि इस संसार में एक संन्यासी की तरह क्यों न रहा जाए? मैं कुछ लिखता भी हूँ तो कई बार उस लिखे में मुझे वो दर्शन और पद्धति महसूस होती है.
जो मेरी अगले 7 दिन की दिनचर्या रहने वाली है. उसकी बात करूँ तो मैंने तय किया है कि अगले 7 दिनों तक मैं लगातार ध्यान की अवस्था में रहूँगा। यानी मेरा पूरा ध्यान मेरी साँस पर टिका होगा। उसके आने और जाने पर. भीतर गहरे तक साँस लूँगा। ज़्यादा से ज़्यादा प्राणवायु मेरे भीतर जाए इसका ख़्याल रखूंगा। साँस के अलावा मैं अगले सात दिनों तक भोजन को लेकर ज़्यादा नहीं सोचने वाला। जितने कम में काम चल जाए बस उतना ही भोजन करूँगा। जीवन के लिए जितना ज़रूरी हो सिर्फ उतना खाऊंगा। जो भी करूँगा एकाग्रचित्त होकर करूँगा। एकाग्रता के लिए सबसे सहज और हितकर मार्ग यही है कि आप अपने साँसों पर ध्यान बनाकर रखें। इसके अलावा कुछ और काम करने पड़े जैसे नहाना, भोजन आदि तो वह भी पूरी एकाग्रता के साथ किया जाए.
इन तीनों बातों के अलावा चौथी बात जिसका मुझे ध्यान रखना है, वो है -मौन. मेरी कोशिश रहेगी कि मैं 24 घटे मन, वचन और विचार से मौन रहूं। कोई आफत ही आ जाए तो दो, चार शब्द बोलकर या कागज़ पर लिख कर काम चल जाए तो यह कर लूँ. यह कठिन है पर इसका अपना ही आनंद है. सिर्फ बोलना ही बंद नहीं करना है बल्कि देखना और सुनना भी न्यूनतम कर देना। ज़्यादातर वक़्त मेरे आँखों पर इस दौरान पट्टी बंधा होगा और मैं पूरी तरह से सिर्फ ध्यान में रहने का प्रयास करूँगा। आखिरी बात यह समय मैं किसी मजबूरी में नहीं करूँगा, बल्कि पूरे आनंद भाव से करने वाला हूँ. मुझे कुछ याद नहीं कि कोरोना की वजह से पूरे देश में बंद की स्तिथि है. मैं घर से बाहर नहीं निकल सकता। कि मैं सबसे दूर यहाँ मुंबई में अकेले हूँ. मुझे बस इतना याद है कि मैं सुख और आनंद में हूँ और इस समय को एक अवसर की तरह देख रहा हूँ. फिर जीवन में मुझे यह सात दिनों का विशेष ध्यान करने का अवसर न मिले तो क्यों न इस समय का लाभ उठा लूँ. कुछ बहुत ज़रूरी कोई फोन आ गया (काम के सिलसिले में) तो उस तरह के फोन मैं ज़रूर उठाऊंगा और कुछ लिखना हुआ तो वो भी करूँगा। लेकिन, अगर ऐसा न हुआ तो वो और भी अच्छा। अपने अनुभव मैं आप सबको ब्लॉग पर बताता रहूँगा।
- हीरेंद्र झा
बहरहाल, आज दिन में ओशो के कुछ वीडियो सुने। ग्रेजुएशन के दौरान मैंने ओशो को खूब पढ़ा है और उसका मुझे लाभ भी हुआ. लेकिन, अरसे से ओशो और उनकी बातें भूला सा था एक बार फिर उन लम्हों को जी रहा हूँ. मैंने अनुभव किया है कि संन्यास मेरा मूल स्वभाव है. इसलिए भी इस राह पर जाने से थोड़ा बचता हूँ. क्योंकि यह बहुत ही आसान है मेरे लिए. और अगर मैं इस राह पर बढ़ चला तो मुझसे जो लोग जुड़े हुए हैं उन्हें परेशानी हो सकती है. इसलिए कहीं न कहीं मन में यह रहता है कि इस संसार में एक संन्यासी की तरह क्यों न रहा जाए? मैं कुछ लिखता भी हूँ तो कई बार उस लिखे में मुझे वो दर्शन और पद्धति महसूस होती है.
जो मेरी अगले 7 दिन की दिनचर्या रहने वाली है. उसकी बात करूँ तो मैंने तय किया है कि अगले 7 दिनों तक मैं लगातार ध्यान की अवस्था में रहूँगा। यानी मेरा पूरा ध्यान मेरी साँस पर टिका होगा। उसके आने और जाने पर. भीतर गहरे तक साँस लूँगा। ज़्यादा से ज़्यादा प्राणवायु मेरे भीतर जाए इसका ख़्याल रखूंगा। साँस के अलावा मैं अगले सात दिनों तक भोजन को लेकर ज़्यादा नहीं सोचने वाला। जितने कम में काम चल जाए बस उतना ही भोजन करूँगा। जीवन के लिए जितना ज़रूरी हो सिर्फ उतना खाऊंगा। जो भी करूँगा एकाग्रचित्त होकर करूँगा। एकाग्रता के लिए सबसे सहज और हितकर मार्ग यही है कि आप अपने साँसों पर ध्यान बनाकर रखें। इसके अलावा कुछ और काम करने पड़े जैसे नहाना, भोजन आदि तो वह भी पूरी एकाग्रता के साथ किया जाए.
इन तीनों बातों के अलावा चौथी बात जिसका मुझे ध्यान रखना है, वो है -मौन. मेरी कोशिश रहेगी कि मैं 24 घटे मन, वचन और विचार से मौन रहूं। कोई आफत ही आ जाए तो दो, चार शब्द बोलकर या कागज़ पर लिख कर काम चल जाए तो यह कर लूँ. यह कठिन है पर इसका अपना ही आनंद है. सिर्फ बोलना ही बंद नहीं करना है बल्कि देखना और सुनना भी न्यूनतम कर देना। ज़्यादातर वक़्त मेरे आँखों पर इस दौरान पट्टी बंधा होगा और मैं पूरी तरह से सिर्फ ध्यान में रहने का प्रयास करूँगा। आखिरी बात यह समय मैं किसी मजबूरी में नहीं करूँगा, बल्कि पूरे आनंद भाव से करने वाला हूँ. मुझे कुछ याद नहीं कि कोरोना की वजह से पूरे देश में बंद की स्तिथि है. मैं घर से बाहर नहीं निकल सकता। कि मैं सबसे दूर यहाँ मुंबई में अकेले हूँ. मुझे बस इतना याद है कि मैं सुख और आनंद में हूँ और इस समय को एक अवसर की तरह देख रहा हूँ. फिर जीवन में मुझे यह सात दिनों का विशेष ध्यान करने का अवसर न मिले तो क्यों न इस समय का लाभ उठा लूँ. कुछ बहुत ज़रूरी कोई फोन आ गया (काम के सिलसिले में) तो उस तरह के फोन मैं ज़रूर उठाऊंगा और कुछ लिखना हुआ तो वो भी करूँगा। लेकिन, अगर ऐसा न हुआ तो वो और भी अच्छा। अपने अनुभव मैं आप सबको ब्लॉग पर बताता रहूँगा।
- हीरेंद्र झा
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